Thursday, April 25, 2019

काश

काश यह हो पाता
वो मेरी होती
और मैं उसका।
काश यह हो पाता
सपनो में उन्हें पाने की जगह
वो होती मेरी हर ख़ुशी की वजह।
तलाश ना जाने किसकी हैं इन आँखों को,
हासिल हैं बहुत कुछ....
मगर तसल्ली फिर भी नहीं..
वो याद आये यूँ ही बहुत..
की लौट आएं सब सिलसिले...
वो ठंडी हवा, वो  गिरते पत्ते
और वो नवंबर का महीना।
याद हैं अभी भी मुझे
वो गम,
जो नही हुआ कभी कम।
इतना प्यार,
फिर भी कुछ ना पाने का गम।
कितनी बातें
बस मन में थाम,
चल पड़ा मैं फिर दिल को थाम।
दोपहर हो आयी जिंदगी की
ठंडी शाम की हैं स्थिति,
तब जाके कहीं वो मिली हस के
कुछ चंद मिनटों में,
निकल ही गया मेरे से
क्या था मेरा सपना
जो उसे साथ न दे पाया।
प्यारी सी हँसी हस के
उसने निगल गयी
मेरी इच्छा को।
कह दी बस मेरे सुकुन के लिए
फिर कहीं, फिर कभी।

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