Saturday, November 23, 2019

छिपकर रो लेता हूँ

कभी कभी छिपकर रो लेता हूँ
हसना तो खुले आम आता हैं मुझे
उस मासूमियत के पीछे
 मालूम
कितनी दर्द समा  रखा हूँ।|

कभी किसी को बोल पाना
वरा अजीब सा लगता हैं
मैंने जीता तो बहुत कुछ
खोया कुछ
कम नहीं |

आज भी दिल थोकर
खा कर करहा उठता हैं
अक्सर
फिर दिल को खुद ही
सम्हाल लेता हूँ |

हस कर बातें बना लेता हूँ
जरूर , लेकिन
उनकी राह देखता रहता हूँ
पता रहता हैं की वह खुश हैं
बस इसी से अपनी तसल्ली कर लेता हूँ |

अपनी चीख  को रोक कर
कायरों की तरह
 छिपकर रो लेता हूँ 

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