कभी कभी छिपकर रो लेता हूँ
हसना तो खुले आम आता हैं मुझे
उस मासूमियत के पीछे
मालूम
कितनी दर्द समा रखा हूँ।|
कभी किसी को बोल पाना
वरा अजीब सा लगता हैं
मैंने जीता तो बहुत कुछ
खोया कुछ
कम नहीं |
आज भी दिल थोकर
खा कर करहा उठता हैं
अक्सर
फिर दिल को खुद ही
सम्हाल लेता हूँ |
हस कर बातें बना लेता हूँ
जरूर , लेकिन
उनकी राह देखता रहता हूँ
पता रहता हैं की वह खुश हैं
बस इसी से अपनी तसल्ली कर लेता हूँ |
अपनी चीख को रोक कर
कायरों की तरह
छिपकर रो लेता हूँ
हसना तो खुले आम आता हैं मुझे
उस मासूमियत के पीछे
मालूम
कितनी दर्द समा रखा हूँ।|
कभी किसी को बोल पाना
वरा अजीब सा लगता हैं
मैंने जीता तो बहुत कुछ
खोया कुछ
कम नहीं |
आज भी दिल थोकर
खा कर करहा उठता हैं
अक्सर
फिर दिल को खुद ही
सम्हाल लेता हूँ |
हस कर बातें बना लेता हूँ
जरूर , लेकिन
उनकी राह देखता रहता हूँ
पता रहता हैं की वह खुश हैं
बस इसी से अपनी तसल्ली कर लेता हूँ |
अपनी चीख को रोक कर
कायरों की तरह
छिपकर रो लेता हूँ
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